छत्तीसगढ़

श्रीकृष्ण की अनेक लीलाओं में श्रेष्ठ रास लीला कथा में रूकमणी विवाह राधाकृष्ण के वेशधारण कर मनमोहक झांकी 

जब जीव में अभिमान आता है,भगवान उनसे दूर हो जाते है, लेकिन जब कोई भगवान को न पाकर विरह में होता है तो श्रीकृष्ण उस पर अनुग्रह कर दर्शन देते है -पंडित शर्मा

हरिमोहन तिवारी रायपुर: राजधानी के परमेश्वरी भवन प्रांगण में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के छठे दिन कथावाचक पंडित सुरेश शर्मा महाराज ने उधव चरित्र, महारासलीला व रुक्मिणी विवाह का वर्णन किया।

पंडित शर्मा ने भगवान की अनेक लीलाओं में श्रेष्ठतम लीला रास लीला का वर्णन करते हुए बताया कि रास तो जीव का शिव के मिलन की कथा है।
गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण से उन्हें पति रूप में पाने की इच्छा प्रकट की,भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों की इस कामना को पूरी करने का वचन दिया।
अपने वचन को पूरा करने के लिए भगवान ने महारास का आयोजन किया।

इसके लिए शरद पूर्णिमा की रात को यमुना तट पर गोपियों को मिलने के लिए कहा गया।सभी गोपियां सज-धजकर नियत समय पर यमुना तट पर पहुंच गईं।कृष्ण की बांसुरी की धुन सुनकर सभी गोपियां अपनी सुध-बुध खोकर कृष्ण के पास पहुंच गईं। उन सभी गोपियों के मन में कृष्ण के नजदीक जाने, उनसे प्रेम करने का भाव तो जागा, लेकिन यह पूरी तरह वासना रहित था।

इसके बाद भगवान ने रास आरंभ किया।
माना जाता है कि वृंदावन स्थित निधिवन ही वह स्थान है, जहां श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। यहां भगवान ने एक अद्भुत लीला दिखाई थी, जितनी गोपियां उतने ही श्रीकृष्ण के प्रतिरूप प्रकट हो गए।
सभी गोपियों को उनका कृष्ण मिल गया और दिव्य नृत्य व प्रेमानंद शुरू हुआ।

रुक्मिणी विवाह का वर्णन करते हुऐ कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने सभी राजाओं को हराकर विदर्भ की राजकुमारी रुक्मिणी को द्वारका में लाकर उनका विधिपूर्वक पाणिग्रहण किया। मौके पर आयोजक मंडली की ओर से आकर्षक वेश-भूषा में श्रीकृष्ण व रुक्मिणी विवाह की झांकी प्रस्तुत कर विवाह संस्कार की रस्मों को पूरा किया गया। कथा के साथ-साथ भजन संगीत भी प्रस्तुत किया गया।
इस सात दिवसीय भागवत कथा का सफल संचालन के लिए शर्मा सपरिवार सहित गणमान्य नागरिको का सराहनीय योगदान रहा।

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