रायपुर

शांति, प्रेम और मित्रता का संदेश देता हैं श्रीकृष्ण -सुदामा मिलन -पंडित सुरेश शर्मा

मानव और देव की मित्रता को आज भी श्रद्धा से याद किया जाता है सुनते ही दौड़े चले आए मोहन लगया गले से सुदामा को मोहन

हरिमोहन तिवारी रायपुर। राजधानी के परमेश्वरी भवन में चल रही श्रीमदभागवत का श्रवण करने रायपुर दक्षिण के प्रत्याशी महंत पहूचकर कथा व्यास पीठ का दर्शन करते हुए सनातन धर्म की मार्ग ही मनुष्य जीवन की साथर्कता हैं

जीवन में भगवान के शरण से बड़ा किसी का भी शरण नही है कहते हुए कथा स्थल में भी श्रद्धालुओं का भागवत कथा को अपने जीवन में अमल करने को कहते हुए श्रीमदभगवद्गीता का नमन किया
वाचक सुरेश शर्मा की श्रीमुख से श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता की प्रसंग सुनने उमड़े श्रद्धालु
पंडित शर्मा ने संगीतमय से सुदामा और कृष्ण की मिलना व बिछड़ना दुख – सुख सब जुड़े हुए हैं इस प्रसंग में बताया गया कि सारे रिश्ते जन्म के साथ ही आपको मिल जाते हैं।

पर मित्रता का रिश्ता एक ऐसा है। जो आप जन्म के बाद बड़े होने पर बनाते हैं।मित्र का रिश्ता कैसा होता है। क्या-क्या होता है यह सब सुदामा और कृष्ण की इस प्रसंग में विस्तार से वर्णन करके बताया सुदामा कृष्ण की दोस्ती ऋषि मुनि के आश्रम में हुई।भगवान श्रीकृष्ण शिक्षा लेने बलराम के साथ आए।वहीं पर श्री कृष्णा की सुदामा से मुलाकात हुई थी व दोस्ती हुई।

दोनों एक साथ लकड़ी काटने के लिए जाते है उस समय भगवान श्रीकृष्ण की हिस्से का चना खाजाते।
वक्त बीतता गया दोनों की दीक्षा पूरी हुई सुदामा अपने घर चले भगवान श्री कृष्ण ने कहा जब भी तुम्हें मेरी जरूरत पड़े चिंता मत करना मेरे पास चले आना सुदामा गरीबी से बहुत दुखी थे पत्नी सुशीला रोज ताने मारती थी कहती थी कि तुम कहते हो कि तुम्हारे मित्र द्वारिकाधीश कृष्णा है तो फिर भी हमारा ऐसा हाल क्यों है।

क्यों नहीं जाते हो अपने दोस्त के पास मदद मांगने के लिए और सुदामा रोज यह बात सुन सुनकर आखिर में एक दिन राजी हो जाता है।द्वारिका जाने के लिए पर उसके पास कुछ नहीं होता है ले जाने के लिए तब सुशीला पड़ोस से कंकड़ खंडा चावल चार मुट्ठी मांग कर लाती है और वही कपड़े में बांध का सुदामा को देती है ।

तन मे ढकने के लिए कपड़ा नही पांव में पहनने के लिए चप्पल नहीं धोती जगह-जगह फटी हुई

सिर पर पगड़ी भी नहीं ओर फिर भी सुदामा निकल पड़ा द्वारिकाधीश के पास द्वारिका नगरी भूखा प्यासा जंगलों में होते हुए ठोकर खाते हुए सुदामा जब द्वारका पहुचे द्वारपाल से कहा श्रीकृष्ण को संदेश दो उनका मित्र सुदामा आया है तब द्वारपालों को विश्वास ही नहीं हुआ ।

इतने बड़े द्वारिकाधीश का ऐसा कोई होगा।
फटे हाल वाला मित्र द्वारपालअंदर गया बताने के लिए सुदामा ने सोचा कि द्वारपाल वापस नहीं आएगा।

मुझे मेरे पास तो वह जाने लगा पर जैसे ही द्वारपाल ने बताया कि कोई ब्राह्मण आया है वह उसका वर्णन दिया और नाम बताया कि सुदामा वैसे ही भगवान श्री कृष्ण दौड़े चले भागे चले अपने कक्ष से निकले बाहर सुदामा सुदामा करते हुए और जाकर सुदामा को जब देखा गले से लगा लिया पूरी द्वारिका नगरी देख कर हैरान हो गई हमारे भगवान ईश्वर श्री कृष्ण एक पंडित को गले लगा रहे हैं और वह पंडित भी कैसा था किसी को विश्वास नहीं हो रहा था कि यह उनका मित्र है।

सुदामा को अपने महल के अंदर ले गए। अपने कक्ष में अपने हाथों से पांव को जल से धोया कांटों को मुंह से निकाला सुदामा को नहलाया नए वस्त्र धारण कराएं एक से एक पकवान खिलाएं रुकमणी सत्यभामा दंग रह गई देखकर ऐसा प्रेम युगो युगो तक आज तक कभी किसी ने नही किया है ना कभी कोई कर पाएगा सच्ची मित्रता इसे ही कहते हैं।

जब कृष्ण ने पूछा भाभी ने क्या भेजा है।
शर्म के मारे अपने पोटली को छुपाने लगा कृष्ण भी कहां मानने वाले थे।सुदामा से छीन कर पोटली ले ली और देखा कंकण है उठा कर दो मिट्टी मुंह में डाली और जैसे ही खाई वैसे ही उधर सुदामा की झोपड़ी महल बन गई।

सुशीला रानी और बच्चे राजकुमार व राजकुमारी बन गए सुदामा सोच में पड़ गए कैसे बताऊं कि मैं कितना दुखी हूं और क्यों आया हूं ।

क्या मांगू कुछ नहीं बोला सुदामा ने पर प्रभु अंतर्यामी थे उसके सारे दुख दर्द दूर कर चुके थे श्रीमद् भागवत कथा जीवन का सार है अगर कोई सच्चे मन से इसे पड़े वह सुने तो उसका जीवन धन्य हो जाएगा आत्मा और परमात्मा का मिलन देखना है तो वह भागवत में देखें भागवत में सुने भागवत से ग्रहण करें।

कथा प्रागंण में श्रोता सुदामा और श्रीकृष्ण की संगीतमय झांकी देखर भाव विभार हो गए फूलो की वर्षा करते हुए सुख समृद्धि की कामना करते हुए नगर वासी श्रीमद् भागवत कथा का रसपान करके समस्त गुढियारी वासी धन्य हो गए !

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