सरायपाली: मोटापा कम करने के नाम पर बेची जा रही महंगी दवा,उत्पाद बेचने वालों का उच्च स्तरीय जांच करने मुख्य सचिव को कामता पटेल ने लिखा पत्र

सरायपाली। इन दिनों मोटापा कम करने का एक फैशन का दौर चल पड़ा है। मोटापा कम करने के नाम पर महंगा उत्पाद बेचा जा रहा है। इन दवाओं के सेवन से मोटापा कम होने का दावा किया जाता है मगर दवा छोड़ने के बाद इसका दुष्प्रभाव भी देखने को मिल रहा है। एक तरह से विदेशी कंपनियों के उत्पाद को मोटापा कम करने के नाम पर लोगों को दवा लेने का लत डाला जा रहा है।
न्यूट्रिशियन, हर्बल या हेल्थी लाइफ के नाम पर तरह-तरह से उत्पाद लोगों को दिया जा रहा है इसके लिए न तो चिकित्सकों से सलाह ली जा रही है न ही डाईटिशियन विशेषज्ञों से। डायटिंग की आधी अधूरी जानकारी देकर के लोगों को ढेर सारे उत्पाद बेचने का गोरखधंधा चलाए जाने की शिकायत भाजपा पिछड़ा वर्ग मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष कामता प्रसाद पटेल ने मुख्य सचिव छ ग शासन से की हैं।
पटेल ने शिकायत आवेदन में बताया है कि इन उत्पाद की गुणवत्ता एवं स्वास्थ्य के लिए कितना लाभदायक या नुकसानदेह हो सकता है इसकी न तो स्वास्थ्य विभाग जांच कर रहा है और न हीं खाद्य विभाग। उन्होंने बताया कि सरायपाली अंचल में जो उत्पाद बेचा जा रहा है उससे मोटापा कम करने का दावा तो किया जा रहा है मगर उस दावे में कितनी सत्यता इसे परखना जरूरी है। इन उत्पादों की प्रमाणिकता का परीक्षण नहीं हो पा रहा है और तो और बिना चिकित्सकीय सलाह एवं मार्गदर्शन में लोगों को कैप्सूल परोसा जा रहा है। इन उत्पादों का कितना खतरनाक दुष्परिणाम होगा इसका अंदाजा किसी को नहीं है।
अपने आप को वेलनेस कोच बताने वालों के पास ऐसी कौन सी वैध डिग्रियां हैं जिससे वे लोगों को कथित तौर पर प्रोटीन पाउडर और अन्य दवाएं देकर डाइटिंग करा रहे हैं। शारीरिक व्यायाम से जब मोटापा कम हो सकता है तो फिर इतने महंगे उत्पाद लोगों को क्यों बेचा जा रहा है। आखिर यह उत्पाद कहां से आ रहे हैं? ये उत्पाद कौन सी कंपनी के हैं और इनका भारतीय बाजार मूल्य कितना है? इनका परीक्षण कौन से भारतीय लैब में हुआ कब हुआ जैसे सवालों का जवाब लोगों के पास नहीं है। वही इन उत्पादों पर जीएसटी भुगतान की प्रणाली किस तरह अपनाई जा रही है यह भी प्रश्न चिन्ह हैं।
दवा देकर मोटापा कम करने का यह व्यवसाय खूब फल फूल रहा है जो पहले शहरी क्षेत्रों तक सीमित था अब ग्रामीण क्षेत्रों तक फैल चुका है। इस व्यवसाय में कुछ सरकारी, कर्मचारी, अधिकारी भी जुड़कर उत्पादों को बेचने का धंधा चल रहे हैं। कुछ बड़े अधिकारियों के जुड़ने से उनके अधीनस्थ कर्मचारी एवं आम जनता उनके प्रभाव और दबाव में आकर इन उत्पाद को लेने के लिए मजबूर हो जाते हैं।
प्रदेश उपाध्यक्ष पटेल ने बताया कि हर्बल जैसे नाम पर जो भी उत्पाद बेचा जा रहा है वह कितना सही है? व्यवसाय से शासन को राजस्व के रूप में कितना लाभ मिल रहा है इसकी उच्च स्तरीय जांच की जानी चाहिए । शासन को लाभ हो न हो कंपनी को मोटी रकम मिल रही है और इनसे जुड़े लोग कमीशन के नाम पर मालामाल हो रहे हैं यहां तक तो कुछ लोग चांद पर भी जमीन खरीदने का दावा कर रहे हैं जिसकी जांच किए जाने की मांग कामता पटेल ने मुख्य सचिव से की गई शिकायत में की हैं।
सूत्र बताते हैं कि वेलनेस कोच बने कुछ लोग प्रति माह करीब 8 से 15 हजार रुपए की दवाएं और विभिन्न प्रकार के पाउडर अथवा शेक देकर लोगों को वजन कम करने, बढ़ाने, शरीर में किसी भी प्रकार की समस्याओं के समाधान का दावा कर रहे हैं। जिनके झांसे में आकर जनता अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई को गवां रही हैं। इन वेलनेस कोच के पास न तो डाईटिशियन की कोई वैध डिग्री हैं और न ही अन्य कोई विषय विशेषज्ञ चिकित्सा ज्ञान की डिग्री, यहां तक कि टैबलेट बेचने के लिए फार्मा कंपनियों का रजिस्ट्रेशन और इससे जुड़ी डिग्री भी इनके पास नहीं है बावजूद इस व्यवसाय का नेटवर्क बड़े स्तर तक फैला हैं। इनसे मंहगा उत्पाद लेकर कुछ लोगों ने उत्पाद लेना बंद किया तो उन्हें चक्कर और बड़े हुए मोटापे का शिकार तक होने की बात उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बताई।